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रवींद्रनाथ टैगोर के विचार वर्तमान युग में प्रासंगिक

रवींद्रनाथ टैगोर के विचार वर्तमान युग में प्रासंगिक


*रवींद्रनाथ टैगोर के विचार वर्तमान युग में प्रासंगिक*

साल्वेशन के तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश भर के बुद्धिजीवियों और विचारकों का विचार

पटना, 31 अक्टूबर 2021ः कला एवं संस्कृति मंत्रालय, सरकारी प्रायोजन और मौलाना आजाद ह्यूमैनिटेरियन रिसर्च फाउंडेशन के सह प्रायोजन में रविवार को ए एन सिन्हा अुनसंधान संस्थान, पटना में प्रसिद्ध सामाजिक और साहित्यिक संगठन ‘साल्वेशन’ द्वारा ‘‘भारतीय कला और संस्कृति में रबीन्द्रनाथ टैगोर का योगदान’’ विषय सेमिनार का आयोजित किया गया। जिसमें देश भर के बुद्धिजीवियों और विचारकों ने अपने विचार व्यक्त किए।


उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता पटना विश्वविद्यालय के बांग्ला विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रो. ममता दास शर्मा ने की. उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि वर्तमान समय में रवीन्द्रनाथ टैगोर के उदात्त विचारों और विचारों का महत्व बढ़ गया है। वे शांति और मानवता के प्रबल हिमायती थे। प्रेम और मानवता ही उनका सच्चा धर्म था। जिन्होंने अपनी विचारधारा से देश को निर्माण और विकास की नई राह दिखाई। उन्होंने कहा कि बंगाल के बाहर टैगोर को सबसे पहले बिहार राज्य में सम्मानित किया गया। जब वह अपनी बेटी से मिलने मुजफ्फरपुर पहुंचे तो यहां के लोगों ने उनका जोरदार स्वागत किया। वे कई बार बौद्ध गया भी आए क्योंकि वे गौतम बुद्ध से बहुत अधिक प्रभावित थे। उन्होंने कहा कि टैगोर पहली बार मार्च 1936 में शांति निकेतन के गठन के सिलसिले में अपनी टीम के साथ पटना आए और एक मात्र दिन में निर्मित एलिफिंस्टन सिनेमा हॉल में अपने प्रसिद्ध नाटक का प्रदर्शन किया। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से भारतीय सभ्यता और संस्कृति को एक नया आयाम दिया।


इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए, बिहार लोक सेवा आयोग के सदस्य इम्तियाज अहमद करीमी ने कहा कि टैगोर हमारी विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं जिस पर पूरे देश को गर्व है। वह साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले एशिया के एकमात्र व्यक्ति थे। उन्होंने पूरे विश्व में भारतीय साहित्य की महानता का जश्न मनाया जो हमारे लिए गर्व का विषय है। टैगोर की महानता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि न केवल भारत बल्कि बांग्लादेश और श्रीलंका ने भी उनके द्वारा लिखी गई कविता को अपना राष्ट्रगान बनाया था। परिवार के लोग उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहते थे लेकिन कानून के अध्ययन को नापसंद करते हुए, उन्होंने साहित्य और संस्कृति को प्राथमिकता दी ।


संगोष्ठी में स्वागत भाषण में डॉ. मुहम्मद अंजार आम, महासचिव, साल्वेशन ने सभी अतिथियों का स्वागत किया और संगोष्ठी के उद्देश्यों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि साल्वोशन को शिक्षा एव अध्ययन को विषय बनाकर जमीनी स्तर पर काम शुरू किया जिसक तहत कोचिंग सेंटर की स्थापना के साथ कार्य प्रारंभ किया। जैसे-जैसे कारवां आगे बढ़ा, संस्था ने शिक्षा और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी कदम उठाए और छात्रों को सही समय पर मार्गदर्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि गरीबी और अशिक्षा कोई विरासत नहीं बल्कि लापरवाही की बात है और इस गतिरोध को तोड़ना ही मोक्ष का मिशन है। नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर अमर्त्य सेन ने भी कहा है कि जागरूकता की कमी के कारण गरीबी और निरक्षरता व्याप्त है। डॉ. अंजार आलम ने कहा कि केवल नौकरी पर निर्भर रहना सही नहीं है बल्कि शिक्षा के बाद व्यवसाय पर ध्यान देना और उसे प्राथमिकता देना अधिक उपयोगी है। केंद्र सरकार द्वारा कई प्रमुख परियोजनाएं चलाई जा रही हैं जिसके तहत एमएसएमई और एनएसडीसी दो सप्ताह के पाठ्यक्रम के माध्यम से उद्यमिता के लिए प्रशिक्षण प्रदान करते हैं और अपनी साख के आधार पर 20 लाख रुपये तक ऋण देते हैं अपने स्वयं के व्यवसाय के लिए ऋण दिया जाता है। और बिना किसी सामान को गिरवी रखे 25 लाख रुपये तक दिए जाते हैं। गुजरात और हरियाणा में, सभी छात्र और युवा इन केंद्रीय योजनाओं, विशेष रूप से प्रधान मंत्री स्व-रोजगार योजना से अत्यधिक लाभान्वित हो रहे हैं, और न केवल व्यापार में संलग्न होकर अपनी वित्तीय बाधाओं को दूर कर रहे हैं, बल्कि तेजी से विकास के पथ पर हैं। लेकिन इन परियोजनाओं का उपयोग बिहार में नहीं हो रहा है. असली कारण जागरूकता की कमी है। नियमों और विनियमों का पालन और व्यापार की गुणवत्ता भी आवश्यक है। बुनियादी शिक्षा, खासकर भाषा पर ध्यान देना चाहिए।


संगोष्ठी को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार डॉ. रेहान गनी ने कहा कि टैगोर ने साहित्य की हर विधा में हाथ आजमाया। उनके सभी संग्रहों और पुस्तकों का उर्दू में अनुवाद भी किया गया। उनकी रचनाओं में कमजोर और वंचित और मजदूर वर्ग का दर्द और दुख प्रमुख था। उनका जन्म एक जमींदार परिवार में हुआ था लेकिन फिर भी उन्होंने जमींदारों के खिलाफ ऐसा विद्रोह किया कि साहित्य जगत में कोई मिसाल नहीं है।


प्रमोद कुमार, प्रोफेसर, हिंदी विभाग, बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर ने मुख्य भाषण देते हुए कहा कि टैगोर विश्व शांति और भाईचारे के एक महान अग्रदूत थे, जिन्होंने पहली बार 1870 में भारतीय सभ्यता पर इतना ध्यान दिया कि इसने एक मजबूत आंदोलन। उन्होंने कहा कि टैगोर राष्ट्रवाद के समर्थक थे लेकिन वे मानवता की सीमाओं से परे राष्ट्रवाद के कट्टर विरोधी थे। संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान में भी, उन्होंने दुनिया को एक बहुत ही प्रभावी संदेश दिया। टैगोर का मानना था कि जहां भी प्रेम समाप्त होगा भारतीय समाज पतन के कगार पर होगा। गीतांजलि में उन्होंने जो प्रेम और मानवता का संदेश दिया है वह सार्वभौमिक है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से देश और दुनिया का मार्गदर्शन किया और धर्म नहीं करम के आधार पर भारतीय सभ्यता और संस्कृति के लिए अपना आजीवन संघर्ष जारी रखा।


मौलाना मजहर-उल-हक अरबी और फारसी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. तौकीर आलम ने कहा कि टैगोर ने सार्वजनिक जीवन को अपनी सभी रचनाओं का केंद्र बनाया और यही उनका महान गुण था। टैगोर अपने आप में एक आंदोलन थे। टैगोर ने अपनी सुन्दर कविता ताजमहल और शाहजहाँ के सन्दर्भ में कला पर मृत्यु की विजय का सर्वाेत्तम मानचित्र तैयार किया है।


इमारत शरिया, बिहार, झारखंड और उड़ीसा के के कार्यवाहक नाजिम मौलाना शिबली अल-कासिमी ने कहा कि टैगोर के विचारों का महत्व आज पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है जहां जहां सिसकती इंसिानियत को टैगोर की विचारधारा की सख्त जरूरत है। टैगोर के विचार देश की स्थिति को सुधारने और नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करने में मदद करेंगे।


संगोष्ठी को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अहमद जावेद ने टैगोर को भारत का शिक्षक बताते हुए कहा कि उनके विचारों पर महान शोध की आवश्यकता है और वर्तमान समय में इसका उपयोग बहुत महत्वपूर्ण है। टैगोर ने आधुनिक भारत की खोज और निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने विचार और कर्म की एकता का बड़ा संदेश दिया।


प्रसिद्ध विद्वान प्रोफेसर शकील अहमद कासमी ने कहा कि टैगोर ने अपनी उत्कृष्ट और गुणवत्तापूर्ण रचनाओं से पूरी दुनिया को प्रभावित किया। 1913 में नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद उनके व्यक्तित्व और सेवाओं को मान्यता देने की प्रक्रिया शुरू हुई। अगर टैगोर आज मौजूद होते तो त्रिपुरा की घटना के विरोध में सरकार को अपना पुरस्कार वापस कर देते, जैसे उन्होंने 1919 में ब्रिटिश सरकार को ‘सर’ की उपाधि लौटा दी थी।


सेमिनार में वक्ताओं में प्रो. हामिद अली खान, प्रो. सफदर राम कादरी, डॉ. मुहम्मद मजहर हुसैन, डॉ. मुहम्मद अजमल, डॉ. सागर सरकार, अनुसंधान विद्वान सुभान उस्मानी और डॉ. मुहम्मद मुर्तजा शामिल थे।


इस अवसर पर उपस्थित लोगों में प्रो. आफताब आलम, असर फरीदी, शकील सहस्रामी, मुहम्मद नौशाद अंसारी, डॉ. अनवारुल हादी शामिल हैं।


कार्यक्रम की शुरुआत हाफिज और कारी मुहम्मद हसनैन द्वारा पवित्र कुरान के पाठ के साथ हुई। जबकि याकूब अशरफ़ी ने संचालन किया।

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