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  हास्य व्यंग्य नाटक "सर मुड़ाते जूते पड़े” का मंचन

हास्य व्यंग्य नाटक "सर मुड़ाते जूते पड़े” का मंचन


 हास्य व्यंग्य नाटक "सर मुड़ाते जूते पड़े” का मंचन"

पटना : अहसास कलाकृति द्वारा 15 दिवसीय नाट्य कार्यशाला में तैयार नाटक के मनोज सिंह लिखित एवं कुमार मानव निर्देशित हास्य व्यंग्य नाटक " सर मुड़ाते जूते पड़े" का मंचन स्कूल के वार्षिकोत्सव में छात्र छात्राओं द्वारा गर्दनीबाग में किया गया।

      नाटक में सुंदरलाल ढोलफटे के परिवार में उनकी पत्नी मनोरमा ढोलफटे और साला पप्पू पोपट रहते हैं सुंदरलाल की बेटी दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रही है एक दिन उनकी बेटी का हाथ मांगने के लिए भाई जी sinha अपने बेटे पति सिन्हा के साथ सुंदरलाल के घर आता है और लंबी-लंबी फेंकने लगता है तभी सुंदरलाल का साला पप्पू पोपट बाहर से सर पर जूते चप्पलों से भरी टोकरी उठा वहां आ जाता है और सबके सामने भाई जी सिन्हा और पति सिन्हा का पोल खोल देता है कि बाप वॉचमैन है और बेटा लिफ्ट मैन। इतना सुनते ही दोनों वहां से भाग खड़े होते हैं इधर पप्पू अपनी दीदी मनोरमा और जीजा सुंदरलाल को बताता है कि पड़ोस वाले नेता जी के भाषण में पब्लिक ने काफी जूते चप्पल चलाएं जिन्हें वह उठा लाया है वह सुंदरलाल से कहता है कि अब मैं निकम्मा नहीं रहा इसलिए चलकर मेरी शादी की बात इंस्पेक्टर तोपची की बेटी के साथ तय कर दीजिए सुंदरलाल टोकरी में से एक पुलिस जूता निकाल कर पप्पू को देते हुए कहता है कि पहले इस जूते की जोड़ी लगाओ फिर तुम्हारी जोड़ी लगेगी इंस्पेक्टर तेज बहादुर तोपची की बेटी बेबी तोपची एक पुलिस जूता लाकर पप्पू पोपट को दे देती है और पप्पू वह जूता अपने जीजा सुंदरलाल को देता है उधर अपने दोनों जूते गायब होने की वजह से इंस्पेक्टर तोपची परेशान है क्योंकि डिपार्टमेंट में उसे जवाब देना पड़ सकता है सुंदरलाल ढोलफटे इंस्पेक्टर तोपची के जूते पहनकर अपने साले पप्पू पोपट के लिए तोपची की बेटी का हाथ मांगने उसके घर पहुंचता है वहां सुंदरलाल और पप्पू यह देखकर चौंक जाते हैं कि इंस्पेक्टर की बेटी से रिश्ते की बात करने के लिए भाई जी सिन्हा और पति सिन्हा पहले से ही वहां विराजमान हैं। इसी क्रम में भाई जी सिन्हा की पोल खुल जाती है और सुंदर लाल जूते निकालकर इंस्पेक्टर तोपची को दोनों बाप बेटे को मारने के लिए देता है। मगर अपने जूते को पहचान कर उसी जूते से पप्पू पोपट और सुंदर लाल पर दे मारता है।

             नाटक में रिया, वैष्णवी, खुशी, केशव, प्रकाश, रौशन, अंकित तथा रचना ने अपने अपने अभिनय से दर्शकों को ठहाके लगाने पर मजबूर किया। रूप सज्जा माया कुमारी तथा मंच व्यवस्था हिमांशु कुमार ने किया। इस अवसर पर कला पुरुष एवं वरिष्ठ पत्रकार विश्वमोहन चौधरी संत ने कहा कि कुमार मानव रंग चेतना के लिए प्रतिबद्ध हैं और नई पीढ़ी को रंगमंच के लिए तैयार कर रहे हैं , यह बहुत बड़ी बात है। मैं उनके रंगमंच के प्रति अथक प्रयास को सलाम करता हूं।

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